रवि एक फ्रीलांस आर्टिस्ट था, जिसे शांति और अकेलेपन की ज़रूरत थी। शहर की हलचल से दूर, उसने एक पुराना बंगला खरीदा जो एक सुनसान पहाड़ी इलाके में था। बंगला काफ़ी पुराना था, दीवारें जर्जर थीं और फर्श पर लकड़ी की चरमराहट हर कदम पर सुनाई देती थी।
बावजूद इसके, रवि को वो घर पसंद आ गया। उसे लगता था यहां उसका मन लगेगा, और वह अपनी पेंटिंग्स पर फोकस कर पाएगा।

घर की सफाई करते समय रवि को एक पुराना, भारी और धूल-भरा आईना मिला जो मेन हॉल की दीवार पर लगा था। वह काफी पुराना लगता था — लकड़ी की नक्काशीदार फ्रेम और थोड़ा टूटा हुआ कांच।
रवि ने सोचा कि इसे हटा देगा, लेकिन जब उसने उसे छूने की कोशिश की, तो एक अजीब ठंडक उसके हाथों में उतर आई। उसे लगा यह उसका वहम है, और उसने उसे वहीं छोड़ दिया।
अगली रात रवि को महसूस हुआ कि कोई उसे देख रहा है। जब उसने आईने की ओर देखा, तो उसमें एक काली परछाई दिखी जो उसके पीछे खड़ी थी। उसने पीछे मुड़कर देखा — लेकिन वहां कोई नहीं था।
रात दर रात यह दृश्य और डरावना होता गया। कभी कोई मुस्कुराता हुआ चेहरा, कभी किसी की आंखें सीधे उसकी आंखों में घूरतीं।

एक रात, रवि ने देखा कि उसका अक्स उसे कॉपी नहीं कर रहा था। वह खुद आराम से खड़ा था, लेकिन आईने में उसका प्रतिबिंब मुस्कुरा रहा था… और धीरे-धीरे सिर झुका रहा था।
डर के मारे रवि ने आईना तोड़ने की ठानी। उसने हथौड़ा उठाया और पूरी ताकत से आईने पर दे मारा। लेकिन कांच नहीं टूटा… बल्कि उसके भीतर से हंसी की आवाज़ें आने लगीं।
उसने देखा, आईना दरअसल एक दरवाज़ा था — आत्माओं की दुनिया की ओर।
अगली सुबह, पड़ोस के लोग जब बंगले की ओर आए, तो दरवाज़ा खुला था। रवि कहीं नहीं था। हॉल की दीवार पर वही आईना जस का तस लगा था।
लेकिन अब उसमें कोई और चेहरा दिखाई देता था — रवि का।
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